hindi poetry from mother for mother

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माँ ...मैं तुम्हारे जैसी बनने लगी हूँ ....

जिन बातों को लेकर तुमसे नाराज होती थी, 
अब वो सब मैं करने लगीं हूँ। 
सुबह के अलार्म बजने से लेकर, 
रात की लाइट बंद होने तक काम करने लगीं हूँ। 

माँ ...मैं तुम्हारे जैसी बनने लगी हूँ ....

खुद की जरूरतों को जरूरी न समझ कर,
 बाकियों की जरूरतों को पूरा करने लगीं हूँ ।
आसमां में उड़ने वाली मैं.....बेफ़िक्र सी ,
अब अपनों के लिए फिक्रमंद रहने लगीं हूँ। 

माँ ...मैं तुम्हारे जैसी बनने लगी हूँ ....

ख़ुद की भूख सहन नहीं होती थी कभी, 
अब अक्सर पहरों के निवाले भूलने लगीं हूँ। 
सिर्फ अपने लिए जीने वाली मैं, 
अपने हिस्से का अपनों के लिए बचाने लगीं हूँ। 

माँ ...मैं तुम्हारे जैसी बनने लगी हूँ ....

हर बात को खुल कर कहने वाली मैं, 
अब कुछ बातों को दबा कर रखने लगीं हूँ। 
अपनी इच्छाएं लाजमी लगतीं नहीं मुझे, 
अब अपनों की चाहतों को तरजीह देने लगीं हूँ। 

माँ ...मैं तुम्हारे जैसी बनने लगी हूँ ....

कभी घंटों बालों को संवारती रहती थी, 
अब आईना भी देखना भूलने लगीं हूँ। 
छोटी छोटी बातों से ही रो देने वाली मैं, 
अब बड़ी बड़ी बातों को भी नजरअंदाज करने लगीं हूँ। 

माँ ...मैं तुम्हारे जैसी बनने लगी हूँ ....

जो थी मैं अब वो रही नहीं ......
माँ मैं अब बदलने लगी हूँ.......।

11 टिप्पणियाँ

  1. Superb one...👏👏 Any one could get into tears after reading such beautiful poetry...Great job..

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  2. शब्द खुद खूबसूरत हो जाते है, जब वो माँ का जिक्र करते हैं।

    एक माँ का अपनी माँ के साथ के सामंजस्य की बड़ी ही खूबसूरत व्याख्या है।

    Perfectly written with the mature blending of emotions and thoughts... Kudos... Superb... Perfect...

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  3. Beautifully written. This is a process when learn
    “ Dear mom, I get it now.”

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