Hindi Poetry on Love चाँद की बेरुखी

Hindi Poetry on Love चाँद की बेरुखी

चाँद से झगड़ा हो गया 
वो जा बादलों में छुप गया 

पर मैं फिर भी निहारती रही 
उसे देखने को सुबह तक जागती रही 

मैं तन्हा.. मेरी नम आंखे भी बरसने लगी 
उसे मिलने की आस भी अब खोने लगी 

वो जा सितारों की नगरी में भूल गया हो जैसे 
अपनी चांदनी समेत खो गया फिर से 

सही था वो हर बार और हमेशा से 
मैं....अमावस्या की रात...मेरे संग आयेगा कैसे 

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