जिन्दगीनामा : Poetry on Life

जिन्दगीनामा : Poetry on Life

Poetry on Life: दोस्तों "जिन्दगीनामा : Poetry on Life" कुछ उर्दू और हिन्दी की पंक्तिया हमारी अतिथि कवयत्री श्रीमती रेनू प्रजापति द्वारा प्रस्तुत की गयी है । इस कविता के माध्यम से हमारे जीवन के उमड़ती इच्छाओं को तथा उसे रोकने वाले सभी अवरोधों को एक साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । उम्मीद है की यह कविता जिन्दगीनामा : Poetry on Life आपको अवश्य पसन्द आएगी।

     
poetry on life, उर्दू हिन्दी पंक्तियां

               जिन्दगीनामा

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 कैद--हयात का ये आलम रहा ....

उन्मुक्तता के लिए एक उज्र ही तलाशते रहे ...

चिंता कभी बीते हुए कल की,

आशा कभी आने वाले पल की,

इन्हीं पिंजरे के सींकचो में उलझ कर ,

ख्वाहिशों के पर टूट कर बिखरते रहे ....

सहल नही है ये हयात--सफर ,

कभी रिश्तों के दायरों में बंधकर,

कभी समाज के बोझ से दबकर

खुद के ख्वाबों को खुद ही रौंदने पड़े.....

गुम गये इतने दुनिया के उलझनों में,

खुद को भूल गए गाफिल  अंजुमन में ,

ऐसी रही दास्ता--जिन्दगी कि,

सपने सामने ही आबसार से बहते रहे......

 

     यूं ही चले जा रहे है

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 यूं ही चले जा रहे है सफर--रहगुजर में 

समझ ही नही रहा है हयात--मुख्तसर....

लियाकत नही कि समझ सके दुनिया के दस्तूर 

पर शिद्दत से लगे है माकूल बनाने में ...

दिले नादां तू यूं ही चला चल राह पर 

झंझावतो से घबरा कर यूं पथ से रुखसत कर

निराशा के अब्र को भेद तुझे चलते जाना है ,

मुसाफिर तुझे तो कर्म पथ पर बढ़ते जाना है....

माना की कोई उज्र नही,कोई तमन्ना नही।

इक नयी राह बनाते हुए चलते जाना है ......

बड़ी मुश्किल होती है जब मंजिल रहगुजर बनती है 

पर उम्मीद--चिराग जलाते हुये जाना है.....

यहां कोई है अपना, कोई साथ देता है 

खुद ही खुद का वसीला बनते जाना है.....

दरख्तों के साये सी है ये जिन्दगी के किस्से

बस इक लौ की तरह जलते जाना है.....

 

रेनू प्रजापति

( शिक्षिका व लेखक )

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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