Poetry on relationship पितरों को नमन

Poetry on relationship पितरों को नमन

Poetry on relationship

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Image by : Pixabay

पितरों को नमन 


आज खोज रहा हर घर पंडित ,
बना पकवान भोज खिलाने को ,
जहां कभी कोई तरस रहा था ,
सुबह शाम रोटी के निवाले को  ।

भोर हुई ....स्नान किया ,
पित्रों को खुश करने को... 
हाथ जोड़ कर नमन किया  ,
पर भूल गए वो दिन सारे ,
उनके दर्द से जब ....
था खुद को अंजान किया ।

समय निकाल नियम करने को तत्पर ,
हाथ में पुष्प और जल लेकर ,
पर बुढ़ी प्यासी आवाज सुनने पर ...,
समय नहीं था देने पानी को  ।

विधि संयम से तर्पण कर ,
भ्रांति है पितरों को प्रसन्न किया ,
जब उनके जीवन काल में ,
उन्हें ठोकर और अपमान दिया ।

मात-पिता के चरणों में ,
बहती प्रेम सुधा की धारा है ,
संचित कर लो..क्यों वंचित रहना ,
स्नेह सम्मान से फर्ज निभाना है ।

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