poetry on relationship मामा (Mama)

poetry on relationship मामा (Mama)

 

               "  मामा "

कौन कहता है मौसी सिर्फ़ माँ जैसी होती है,

' मामा 'में तो दो माँ समाई होती है ।

जिसके अंदर माँ जैसा प्यार भर भर कर रहता है,

वहीं तो 'मामा' कहलाता है ।

जब चोट लगती है सबसे पहले दौड़ कर आ जाता है, 

सहलाता है...प्यार से गले लगाता है ।

' मामा ' के अंदर माँ का एहसास दोगुना हो जाता है।

चिढ़ाता  है, छेड़ता है, सताता है...

पर मुझमे वो खुद को भूल जाता है ।

' मामा ' तुझमे माँ का दुलार दोगुना बढ़ जाता है।

अपनी पैनी नजर हम बच्चों से नहीं हटाता है, 

' छोड़ो जाने दो ' कहकर हर बार बचाता है ।

गलतियों पर सबसे पहले डांट  खिलाता है ,

पर रोने पर सबसे पहले गोद में उठाता है ।

' मामा ' तो हमे दोगुनी हिफाज़त से रखता है ।

स्नेह से भरा है पर खुद को बेपरवाह दिखाता है ,

दुखी होने पर पहले सीने से लगाता है ।

हमे देखकर उसका लाङ उभर सा  आता है।  

' मामा '...हमे माँ का दोगुना एहसास कराता है। 

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