" मामा "
कौन कहता है मौसी सिर्फ़ माँ जैसी होती है,
' मामा 'में तो दो माँ समाई होती है ।
जिसके अंदर माँ जैसा प्यार भर भर कर रहता है,
वहीं तो 'मामा' कहलाता है ।
जब चोट लगती है सबसे पहले दौड़ कर आ जाता है,
सहलाता है...प्यार से गले लगाता है ।
' मामा ' के अंदर माँ का एहसास दोगुना हो जाता है।
चिढ़ाता है, छेड़ता है, सताता है...
पर मुझमे वो खुद को भूल जाता है ।
' मामा ' तुझमे माँ का दुलार दोगुना बढ़ जाता है।
अपनी पैनी नजर हम बच्चों से नहीं हटाता है,
' छोड़ो जाने दो ' कहकर हर बार बचाता है ।
गलतियों पर सबसे पहले डांट खिलाता है ,
पर रोने पर सबसे पहले गोद में उठाता है ।
' मामा ' तो हमे दोगुनी हिफाज़त से रखता है ।
स्नेह से भरा है पर खुद को बेपरवाह दिखाता है ,
दुखी होने पर पहले सीने से लगाता है ।
हमे देखकर उसका लाङ उभर सा आता है।
' मामा '...हमे माँ का दोगुना एहसास कराता है।
Wah dil ko choo gya
जवाब देंहटाएंKya baat ...sabhi pyare mama ko samarpit...jinke baare me jyada likha nhi gya...is pyari kavita ke liye dhanywad
जवाब देंहटाएं👍👍
जवाब देंहटाएंBeautifulllllll ❤️❤️
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंWaah ...Sach me mama aise hi hote he.. beautifully described
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