Poetry on nature: बादल (Clouds)

Poetry on nature: बादल (Clouds)

       ⛅ बादल  ⛅



मैं बादल बन जाउँ ...☁️☁️
मैं इतराउं मैं ईठलाउं
और दूर कहीं मैं उड़ जाउँ ।
मैं बादल बन जाउँ...
 
न पकड़ सके न जकड़ सके ,
किसी के हाथ न आऊँ ।
मैं बादल बन जाउँ ...

न शहर देखूं  न पहर देखूं ,
न कोई संग न विरह देखूं ,
मैं कुछ ऐसी फितरत बन जाउँ ।
मैं बादल बन जाउँ ...

मैं उड़ू दूर पहाड़ों पर ,
नदियों के उपर से निकल जाउँ ,
अभी बरसु नहीं ये खुद को समझाऊँ ।
मैं बादल बन जाउँ ...

मैं खेत खेत, मैं बाग बाग 
,मैं चिड़ियों की सुनते राग राग ,
मैं इंद्रधनुष के रंगों से रंगकर🌈
,आसमान में लहराउं ।
मैं बादल बन जाउँ ....

हरियाली देख मन उमड़ रहा ,
न बरस तू  थोड़ा संभल जरा ,
एक हल्की हवा से मैं उड़ जाउँ ।
मैं बादल बन जाउँ ...

जहाँ दूर दूर तक बस बंजर और रेत है ,
  न पानी की बूँद न हरियाले खेत है ,
बस वही जाकर जोर से बरस जाउँ। 🌧🌧
मैं बादल बन जाउँ ।


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