Poetry on miracle of the Ganga: गंगा ( Ganga ) कुछ अनकही सी

Poetry on miracle of the Ganga: गंगा ( Ganga ) कुछ अनकही सी

    ~~ गंगा ~~

सब दूर दूर हो गये, 
पर " गंगा " दूर न हो पाई...
कुछ सूख  गयीं, कुछ मिल गयी सागर में ,
' गंगा 'अभी भी हमसे मुंह न फेर पाई...
दफ़न न हुए जो बदल गए राख में ,
'गंगा 'अभी भी राख को खुद में समाए जा रही..
सब दूर दूर हो गये ,
पर 'गंगा 'दूर न हो पाई... ।

10 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें
और नया पुराने