भोर पर कविता: भोर हुई

भोर पर कविता: भोर हुई

 भोर पर कविता : दोस्तो सुबह की सुंदरता का वर्णन बहुत से महान कवियों ने की है , पर भोर का दृश्य इतना रमणीय होता है की उसका वर्णन बहुत कम लगता है। ऐसी ही एक भोर पर कविता यहा पोस्ट की गई है।उम्मीद है आपको मेरी भोर पर कविता :भोर हुई पसंद आएगी ।

भोर पर कविता :भोर हुई

भोर पर कविता, Hindi poetry on nature

         भोर हुई 


भोर हुई जब हुआ रवि उदय..
जाग गया इंसान,
खिल उठा प्रकृति का  हृदय ,
अंधकर मिट गया,
हुई प्रकाश की विजय,
पौधे पर पड़ी ओस चमक उठी,
बिखरे मोतियो सी, जब हुआ सुदय।
पछियो ने ली अंगडाई, आसमा के साथ,
नदियो का जल नाच उठा, पवन के साथ,
बजने लगी घंटिया, हो गई अजान,
पढ़ी गई कुरान, होने लगी राघव कि जय,
भोर हुई जब हुआ रवि उदय।
ना करो हनन प्रकृति का ,
कोशिश करो सौंदर्य बढ़ाने का,
 बन जाओ इस कुदरत के सखा ,
कर लो अपना पुलकित हृदय ,
तभी होगा मानव का अभ्युदय ।
भोर हुई जब हुआ रवि उदय ....



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